“भुली-बिसरी यादें क्यों भूल गए?
घोटालों की कहानी – हमारी ज़ुबानी!”
बाबू का कमाल – घोटाले की मिसाल
सुनील तोमर आलीराजपुर 🖊️
एक समय की बात है, एक छोटे से गांव में एक सीधा-सादा लड़का रहता था। नाम था उसका शंभू। पढ़ाई में ठीक-ठाक था, लेकिन सपना बड़ा था – “बाबू” बनने का!
वक्त बीता, और जैसे-तैसे इंटरव्यू में जुगाड़ का सही तड़का लगाकर, शंभू बाबू बन गया। गांव वालों ने मिठाई बांटी, ढोल बजे, और गांव में ऐलान हुआ – “अब हमारा भी आदमी सरकार में है!”
लेकिन बाबू बनते ही शंभू में जैसे किसी जिन्न का साया आ गया। पहले सरकारी फाइलें उड़ाने लगा, फिर सरकारी पैसा भी। एक-एक करके लाखों नहीं, करोड़ों का जादू होने लगा – वो भी चुपचाप!
सरकारी कागज़ों में सब साफ-सुथरा था, लेकिन गांववालों को समझ आने लगा कि बाबू की जेब अब बहुत भारी है, और उसकी साइकिल अब SUV में बदल चुकी है!
शिकायतें हुईं, जांच हुई, अखबारों में खबरें आईं – “घोटालेबाज बाबू का कारनामा!”
लेकिन न जाने किस दुआ का असर था, बाबू आज तक आज़ाद है। सरकारी जांच फाइलों में धूल खा रही है और बाबू नए सूट और नई साजिश में बिज़ी है।
गांव वाले अब उसे घोटाला बाबा कहने लगे हैं। वो खुद भी मज़े से कहता है –
जिसे पकड़ना है, पहले सबूत तो ढूंढो!
नोट: यह कहानी पूरी तरह काल्पनिक है, किसी जीवित या मृत व्यक्ति से इसका कोई लेना-देना नहीं है।